हिन्दू धर्म में देवी-पूजन की विशेष महिमा है। देवी के अनेक रूपों में से सप्त मातृका पूजन का महत्व अत्यधिक है। सप्त मातृका देवी ब्रह्माणी, माहेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वाराही, इंद्राणी, और चामुंडा हैं। इनकी आराधना से साधक को शक्ति, समृद्धि, और शुभ फल प्राप्त होता है। सप्त घृत मातृका पूजन में सात प्रकार के घृत (घी) का उपयोग कर देवी की उपासना की जाती है। इस लेख में हम सप्त घृत मातृका पूजन विधि और वसोर्धारा पूजन की संपूर्ण जानकारी देंगे।
सप्त घृत मातृका पूजन का महत्व
- सप्त घृत मातृका पूजन में देवी की कृपा प्राप्त कर नकारात्मक ऊर्जा और कष्टों का निवारण होता है।
- यह पूजन आध्यात्मिक उन्नति के साथ-साथ पारिवारिक सुख-शांति और आर्थिक समृद्धि प्रदान करता है।
- सप्त मातृका की आराधना कुंडली के दोषों और ग्रह शांति के लिए अत्यंत प्रभावी मानी जाती है।
सप्त घृत मातृका पूजन विधि
1. पूजन की तैयारी
- पूजा स्थल की शुद्धि:
गंगाजल से स्थल को शुद्ध करें और लाल कपड़ा बिछाएं। - आवश्यक सामग्री:
- सात प्रकार के घृत (गाय का घी, भैंस का घी, तिल का घी, नारियल का घी, सरसों का घी, बकरी का घी, और काजू का घी)।
- सप्त मातृका की मूर्तियां या प्रतीक चित्र।
- पंचामृत, चंदन, पुष्प, धूप, दीपक, कुमकुम, अक्षत।
- फल, मिष्ठान, और नारियल।
- शुभ मुहूर्त:
प्रातःकाल या प्रदोषकाल में पूजा करें।
2. पूजन विधि
- कलश स्थापना:
कलश को जल से भरें, उसमें गंगाजल, दूर्वा, सुपारी, सिक्का, और आम के पत्ते डालें। उसके ऊपर नारियल रखें और लाल कपड़े से ढक दें। - सप्त मातृका का आवाहन:
- देवी ब्रह्माणी, माहेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वाराही, इंद्राणी, और चामुंडा का आवाहन करें।
- प्रत्येक देवी के लिए विशेष मंत्र का उच्चारण करें:
- ओम् ब्रह्माण्यै नमः।
- ओम् माहेश्वर्यै नमः।
- ओम् कौमार्यै नमः।
- ओम् वैष्णव्यै नमः।
- ओम् वाराह्यै नमः।
- ओम् इन्द्राण्यै नमः।
- ओम् चामुण्डायै नमः।
- घृत अर्पण:
- सात प्रकार के घृतों का एक-एक करके अर्पण करें।
- प्रत्येक घृत के साथ “सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके” मंत्र का जाप करें।
- पुष्प अर्पण और चंदन:
देवी को पुष्प और चंदन अर्पित करें।
देवी के चरणों में अक्षत और कुंकुम रखें। - नैवेद्य अर्पण:
फल, मिष्ठान, और पंचामृत का भोग लगाएं। - आरती:
दीपक जलाकर सप्त मातृका की आरती करें।
आरती के साथ घंटी बजाकर पूजा स्थल को ऊर्जा से भरें। - सप्त मातृका स्तोत्र पाठ:
सप्त मातृका स्तोत्र का पाठ करें और देवी से आशीर्वाद की प्रार्थना करें।
वसोर्धारा पूजन विधि
वसोर्धारा पूजन में घृत या दूध की निरंतर धारा बहाकर देवी को प्रसन्न किया जाता है। इसे धन, वैभव, और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।
- स्थापना:
- पूजा स्थल पर कलश रखें।
- देवी की प्रतिमा के सामने मिट्टी या चावल का एक छोटा टीला बनाएं।
- एक पात्र में घृत या दूध लें और उसे धीमी गति से देवी के चरणों में अर्पित करें।
- मंत्र जाप:
वसोर्धारा के दौरान “ओम् ह्रीं श्रीं वसोर्धारे नमः।” मंत्र का जाप करें। - भोग और तर्पण:
पूजन के बाद भोग लगाएं और जल अर्पित करें। - समापन:
देवी की आरती करें और प्रसाद वितरित करें।
पूजन के लाभ
- आध्यात्मिक उन्नति:
देवी कृपा से साधक को आत्मिक शांति और आध्यात्मिक विकास प्राप्त होता है। - समृद्धि और सौभाग्य:
वसोर्धारा और सप्त घृत मातृका पूजन से धन-वैभव की प्राप्ति होती है। - रोग और बाधा निवारण:
जीवन में आने वाली सभी बाधाओं और रोगों का निवारण होता है। - पारिवारिक शांति:
घर में सुख, शांति, और समृद्धि का वास होता है।
दामोदर अष्टकम: भगवान श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप की स्तुति
निष्कर्ष
सप्त घृत मातृका और वसोर्धारा पूजन का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व अत्यधिक है। यह पूजन न केवल देवी की कृपा प्राप्त करने का माध्यम है, बल्कि जीवन में आने वाली समस्त कठिनाइयों और बाधाओं को दूर करने में सहायक है। यदि विधिपूर्वक और श्रद्धापूर्वक यह पूजन किया जाए तो व्यक्ति को मनोवांछित फल अवश्य प्राप्त होता है।