कर्पूर गौरम करुणावतारं मंत्र और पूरा श्लोक शिव तांडव स्तोत्रम् PDF

कर्पूरगौरम मंत्र एक गहन अभिव्यक्ति है जो भगवान शिव के सार को समाहित करता है। यह उनके दिव्य रूप और गुणों को चित्रित करता है, उन्हें एक करुणामयी और शांत देवता के रूप में प्रस्तुत करता है। इस मंत्र का जप भक्तों को भगवान शिव से जुड़ने में मदद करता है, उनके आशीर्वाद और कृपा को उनके जीवन में आमंत्रित करता है।

इस मंत्र का ध्यान करने से व्यक्ति को शांति और सुकून का अनुभव होता है, क्योंकि यह हमें हृदय में दिव्य उपस्थिति की याद दिलाता है। यह हमें करुणा, पवित्रता और आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि को अपनाने के लिए प्रेरित करता है, जो हमें आत्म-साक्षात्कार और आंतरिक समरसता की राह पर ले जाता है।

9 हनुमानजी के चमत्कारी मंत्र |  Hanuman Ji Ke Chamatkari Mantra

कर्पूरगौरम मंत्र

कर्पूरगौरं करुणावतारं
संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्।
सदा वसन्तं हृदयारविन्दे
भवं भवानीसहितं नमामि॥

श्री शिवाय नमस्तुभ्यं मंत्र का अर्थ, फायदे और महत्व – Shivay Namastubhyam

शिव तांडव स्तोत्र

1. जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम्।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं
चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम्॥

2.जटाकटाहसम्भ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी-
विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि।
धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके
किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम॥

3.धराधरेन्द्रनन्दिनीविलासबन्धुबन्धुर
स्फुरद्दिगन्तसन्ततिप्रमोदमानमानसे।
कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि
क्वचिद्विगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि॥

4.जटाभुजङ्गपिङ्गलस्फुरत्फणामणिप्रभा-
कदम्बकुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे।
मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि॥

5.सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर-
प्रसूनधूलिधोरणी विधूसराङ्घ्रिपीठभूः।
भुजङ्गराजमालया निबद्धजाटजूटकः
श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखरः॥

6.ललाटचत्वरज्वलद्धनञ्जयस्फुलिङ्गभा-
निपीतपञ्चसायकं नमन्निलिम्पनायकम्।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं
महाकपालिसम्पदेशिरोजटालमस्तु नः॥

7.करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल-
द्धनञ्जयाहुतीकृतप्रचण्डपञ्चसायके।
धराधरेन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रक-
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम॥

8.नवीनमेघमण्डली निरुद्धदुर्धरस्फुर-
त्कुहूनिशीथिनीतमः प्रबन्धबद्धकन्धरः।
निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन्नि
मुदारभूतिभारमेतु मन्मनः शिवाय ते॥

9.प्रफुल्लनीलपङ्कजप्रपञ्चकालिमप्रभा-
वलम्बिकण्ठकन्दलीरुचिप्रबद्धकन्धरम्।
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदान्धकच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजे॥

10.अखर्वसर्वमङ्गलाकलाकदम्बमञ्जरी-
रसप्रवाहमाधुरी विजृम्भणा मधुव्रतम्।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं
गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे॥

11.जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजङ्गमश्वस-
द्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट्।
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल
ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः॥

12.दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजोर्
गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः।
तिरोविधाय मा जतो विराजमानमेदुरः
स्फुरत्तु मे मनः शिवं ततास्तु तुङ्गं श्रेयसे॥

13.कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन्
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमञ्जलिं वहन्।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः
शिवेति मन्त्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम्॥

14.इमं हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं
पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेति सन्ततम्।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिन्तनम्॥

15.पूजाऽवसानसमये दशवक्रत्रगीतं
यः शम्भूपूजनमिदं पठति प्रदोषे।
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां
लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शम्भुः॥

PDF Download –

द्वितीय भाग:

1.श्रीत्विष्कर्षिणि केशवप्रणयिनी
स्वर्गापवर्गस्पृशा,
सम्भावित्यामलां गिरा।
संजीवन्यवमाददे
कस्य न भवेत् विपदामुदारगतिर्वाक्यं
प्रियं निर्मलं॥

2.पार्वतीपतिमनस्सुखदं शिवं च,
सर्वमङ्गलदं काले महेशम्॥