पुत्रदा एकादशी, जिसे कभी-कभी पवित्रा एकादशी भी कहा जाता है, हिन्दू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण व्रत माना जाता है। यह व्रत मुख्यतः संतान सुख की प्राप्ति और उनके कल्याण के लिए किया जाता है। यह एकादशी वर्ष में दो बार आती है—पहली पौष शुक्ल एकादशी और दूसरी श्रावण शुक्ल एकादशी के दिन।
पुत्रदा एकादशी व्रत कथा – Putrada Ekadashi 2024
पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय की बात है, महिष्मति नगरी में महिजीत नामक एक राजा राज्य करता था। राजा महिजीत धर्मात्मा, प्रजा का ख्याल रखने वाला, और न्यायप्रिय राजा था। उसके राज्य में सभी लोग सुखी और समृद्ध थे। लेकिन राजा महिजीत को एक चिंता सताती थी—उसके कोई संतान नहीं थी। संतानहीन होने के कारण वह बहुत दुखी रहता था।
राजा महिजीत ने अपनी संतानहीनता के कारण राज्य में प्रचलित कई धार्मिक अनुष्ठान और व्रत किए, परंतु कोई भी उपाय सफल नहीं हुआ। तब राजा ने अपने राज्य के मुनियों और ब्राह्मणों से सलाह ली। मुनियों ने राजा को कहा कि उसे भगवान विष्णु की आराधना करनी चाहिए और संतान सुख की प्राप्ति के लिए पुत्रदा एकादशी का व्रत रखना चाहिए।
Also Read: Hariyali Teej Vrat Katha: शिव-पार्वती प्रेम और तपस्या की अनूठी पौराणिक गाथा
राजा महिजीत ने अपनी रानी के साथ पुत्रदा एकादशी का व्रत पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ किया। व्रत के बाद, दोनों ने विधिपूर्वक भगवान विष्णु की पूजा की और संतान प्राप्ति की प्रार्थना की। उनकी भक्ति और तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें दर्शन दिए और उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया।
कुछ समय बाद, रानी गर्भवती हुई और उन्होंने एक तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया। यह पुत्र राजा महिजीत का उत्तराधिकारी बना और उसने आगे चलकर राज्य का सफल संचालन किया।
Also read: श्री त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग: पौराणिक कथा, धार्मिक महत्व और पूजा विधि
व्रत विधि और महत्व
पुत्रदा एकादशी के दिन, भक्तजन व्रत रखते हैं और भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। इस दिन विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना विशेष रूप से फलदायी माना जाता है। व्रत रखने वाले को निर्जल या फलाहार व्रत करना चाहिए और पूरे दिन भगवान विष्णु के नाम का स्मरण करना चाहिए।
पुत्रदा एकादशी का व्रत केवल संतान प्राप्ति के लिए ही नहीं, बल्कि संतानों के कल्याण और दीर्घायु के लिए भी रखा जाता है। यह व्रत उन दंपत्तियों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है जो संतान सुख की प्राप्ति की इच्छा रखते हैं।
यह कथा और व्रत हमें यह संदेश देते हैं कि सच्ची भक्ति और श्रद्धा के साथ किया गया कोई भी कार्य या व्रत फलदायी होता है, और भगवान विष्णु की कृपा से सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।