Hariyali Teej Vrat Katha: शिव-पार्वती प्रेम और तपस्या की अनूठी पौराणिक गाथा

हरियाली तीज, जिसे श्रावणी तीज या सिंधारा तीज भी कहा जाता है, भारतीय संस्कृति में एक महत्वपूर्ण पर्व है। यह व्रत मुख्यतः उत्तर भारत, खासकर राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, और मध्य प्रदेश में मनाया जाता है। Hariyali Teej शिव-पार्वती प्रेम और तपस्या की अनूठी पौराणिक गाथा का पर्व भगवान शिव और माता पार्वती के पुनर्मिलन और प्रेम का प्रतीक है। इस व्रत को विशेष रूप से विवाहित महिलाएँ अपने पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए रखती हैं।

हरियाली तीज व्रत कथा – Hariyali Teej Vrat Katha

Hariyali Teej की पौराणिक कथा भगवान शिव और माता पार्वती से जुड़ी हुई है। कथा के अनुसार, माता पार्वती भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या करती थीं। उन्होंने लगातार 108 जन्म लिए, और प्रत्येक जन्म में वे भगवान शिव को पाने के लिए तपस्या करती रहीं।

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पार्वती जी का यह दृढ़ संकल्प और उनकी तपस्या अंततः सफल हुई। उनके 108वें जन्म में, माता पार्वती ने फिर से कठोर तपस्या की। इस बार भगवान शिव उनकी तपस्या से प्रसन्न हुए और उन्होंने माता पार्वती को पत्नी रूप में स्वीकार कर लिया। यह पुनर्मिलन श्रावण महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हुआ, जिसे हरियाली तीज के रूप में मनाया जाता है।

इस व्रत के दौरान महिलाएँ पूरे दिन निर्जला व्रत रखती हैं और भगवान शिव तथा माता पार्वती की पूजा करती हैं। वे हरे वस्त्र धारण करती हैं, जो हरियाली और समृद्धि का प्रतीक होते हैं। साथ ही, वे झूले झूलती हैं, लोक गीत गाती हैं, और मेंहदी लगाती हैं।

हरियाली तीज का पर्व न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह स्त्रियों के सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन में भी महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इस दिन महिलाएँ अपने मायके जाती हैं, जहाँ उन्हें सिंधारा (गifts) भेजा जाता है। इसमें मिठाई, कपड़े, मेहंदी, और साज-श्रृंगार की सामग्री शामिल होती है।

हरियाली तीज का व्रत माता पार्वती की तपस्या और उनके अद्वितीय समर्पण का स्मरण करता है, और यह संदेश देता है कि प्रेम और समर्पण से भगवान की कृपा प्राप्त की जा सकती है।